दक्षिणा
सिद्धयोग का एक मूलभूत अभ्यास जिसमें श्रीगुरु को धन के रूप में भेंट अर्पित की जाती है। दक्षिणा के अभ्यास में विद्यार्थी ‘देने’ या ‘अर्पण करने’ के द्वारा श्रीगुरु का सम्मान करता है; उन श्रीगुरु का जो कृपा व परम ज्ञान के स्रोत हैं। अपनी साधना के एक अंग के रूप में, सिद्धयोगी नियमित रूप से व अनुशासनपूर्वक दक्षिणा का अभ्यास करते हैं और उसके उपयोग सम्बन्धी किसी शर्त या किसी निजी प्राप्ति की अपेक्षा के बिना दक्षिणा अर्पित करते हैं।
दर्शन
‘दर्शन’ हिन्दी शब्द है जो संस्कृत भाषा से आया है, जिसका अर्थ है, ‘किसी पवित्र आत्मा की संगति में होना।’ सिद्धयोग पथ पर, दर्शन का अर्थ है, श्रीगुरु की उपस्थिति में रहते हुए उन्हें देखना, समझना या अनुभव करना व जानना या अपने अन्तर में श्रीगुरु की उपस्थिति की अनुभूति करना।
कुण्डलिनी शक्ति
आदि शक्ति; साथ ही यह मानव के अन्दर विकसित होने वाली आध्यात्मिक विकास-क्रम की शक्ति भी है। संस्कृत शब्द ‘कुण्डलिनी’ का शाब्दिक अर्थ है, ‘कुण्डल के आकार की’ और संस्कृत शब्द ‘शक्ति’ का अर्थ है, ‘बल, ऊर्जा, सामर्थ्य’। इस आध्यात्मिक शक्ति के सुप्त रूप को मानव के मेरुदण्ड के मूल में स्थित एक सूक्ष्म शक्ति-केन्द्र यानी चक्र में कुण्डलाकार में दर्शाया जाता है, इसलिए इसे ‘कुण्डलिनी शक्ति’ कहा जाता है। जब यह शक्ति सिद्धयोग के श्रीगुरु द्वारा जाग्रत व नियन्त्रित की जाती है और जब साधक के अपने अनुशासित प्रयत्न द्वारा इसके विकास को सम्बल मिलता है तब यह शक्ति सभी स्तरों पर—भौतिक तथा सूक्ष्म स्तरों पर—साधक का शुद्धिकरण करती है और साधक को उसके दिव्य स्वरूप का स्थायी अनुभव प्रदान करती है।
महासमाधि
जब एक सन्त अपनी भौतिक देह का त्याग कर, परम चिति में विलीन हो जाते हैं, उसे महासमाधि कहते हैं। इस पावन अवसर की वर्षगाँठ, उनकी शिक्षाओं व जो प्राप्ति उन्होंने की, उसके प्रति सम्मान व श्रद्धांजलि अर्पित करने का समय होता है। बाबा मुक्तानन्द ने सन् १९८२ में, अक्टूबर माह की पूर्णिमा की रात्रि को महासमाधि ली।
मन्त्र
पावन अक्षर जिनमें, उनका जप करने वाले का शुद्धिकरण, रक्षण तथा उसे रूपान्तरित करने की शक्ति निहित होती है। सिद्धगुरु से प्राप्त मन्त्र, उनकी कृपा से अनुप्राणित होता है। सिद्धयोग के मन्त्रों में ‘ॐ नमः शिवाय’, ‘गुरु ॐ’ और ‘सोऽहम्’ सम्मिलित हैं।
सद्गुरुनाथ महाराज की जय
हिन्दी भाषा में एक आवाहन जिसका अर्थ है, ‘सद्गुरु की जय हो!’ सिद्धयोग पथ पर, किसी सत्संग या सिद्धयोग अभ्यास के आरम्भ में व समापन पर, या किसी मंगलमय अवसर पर श्रीगुरु की कृपा का आवाहन करने तथा उनके प्रति कृतज्ञता अभिव्यक्त करने हेतु इसका उच्चारण किया जाता है।
साधना
‘साधना’ एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है, ‘सीधे एक लक्ष्य की ओर ले जाना’; [किसी कार्य को] सिद्ध करने का, निष्पादित करने का साधन; आध्यात्मिक अभ्यास। सिद्धयोग विद्यार्थियों की साधना में समाविष्ट हैं : वचनबद्धता से सिद्धयोग के अभ्यासों के साथ संलग्न रहना तथा सिद्धयोग की सिखावनियों का एकाग्रता के साथ अध्ययन करना। सिद्धयोग साधना का लक्ष्य है, आध्यात्मिक रूपान्तरण जो आत्मसाक्षात्कार तक ले जाता है।
शक्तिपात
‘शक्तिपात’ एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है, ‘शक्ति का अवतरण; कृपा का अवतरण’। सिद्धयोग पथ पर, शक्तिपात कृपा का कृत्य है—अर्थात् वह दीक्षा जिसके द्वारा सिद्धयोग की श्रीगुरु दिव्य शक्ति को जिज्ञासु में सम्प्रेषित करती हैं और उसकी कुण्डलिनी शक्ति को, आन्तरिक आध्यात्मिक शक्ति को जाग्रत करती हैं। शक्तिपात दीक्षा, सिद्धयोग सधाना के आरम्भ की सूचक है, अर्थात् यह उस अन्तर-यात्रा के आरम्भ की सूचक है जिसकी परिणति होती है, आत्मसाक्षात्कार के साथ।